शुक्रवार, 17 अप्रैल 2009

छोटी उमर के बुलंद हौसले

दिल्ली के पब्लिक स्कूलों में गरीब-गुरबत बच्चों का दाखिला टेढ़ी खीर है लेकिन सरकारी स्कूल भी इस मामले में कुछ कम नहीं हैं। दिल्ली सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के तहत छात्रों को मिलने वाली छात्रवृत्तियां भी कई बार जरूरतमंदों तक पहुंचने से पहले या तो दम तोड़ देती हैं। लेकिन इन्हीं सरकारी स्कूलों की लड़कियों ने सूचना कानून का इस्तेमाल कर भ्रष्ट शिक्षा व्यवस्था की कुम्भकर्णी नींद को तोड़ने का काम किया है। पेश है अपना पन्ना की एक रिपोर्ट:-

बंटी छात्रवृति
दिल्ली के कल्याणपुरी राजकीय उच्चतर माध्यमिक कन्या विद्यालय के बच्चों की छात्रवृत्तियों की रकम स्कूल प्रशासन हड़पने के फिराक में था। लेकिन स्कूल की ही छात्रा सुनीता ने सूचना के अधिकार का सहारा लेकर स्कूल प्रशासन के इरादों पर पानी फेर दिया। सुनीता ने न केवल अपनी बल्कि स्कूल की सभी छात्राओं को छात्रावृत्ति दिलाकर ही चैन की सांस ली।
मामला कुछ इस तरह है। स्कूल की तमाम छात्राओं के परिजनों से हस्ताक्षर करवा लेने के चार महीने बाद भी छात्रवृत्तियां आबंटित नहीं की गई थीं। सुनीता ने सूचना के अधिकार के जरिए अधिकारियों से जवाब तलब किया। आवेदन ने असर दिखाया और दो दिन बाद ही अधिकारी स्कूल में इस संबंध में जांच करने आए। इस बीच प्रिंसिपल ने छात्राओं को नाम काटने की धमकी देते हुए कहा कि वह अधिकारियों के सामने छात्रवृत्ति मिलने की बात कहें। अधिकारियों ने जब छात्राओं से इस बारे में पूछा तो उन्होंने अपनी प्रिंसिपल के कहे अनुसार जवाब दिए लेकिन सुनीता ने ऐसा नहीं किया। अधिकारियों के सामने उसने बेबाकी से प्रिंसिपल की शिकायत की और उसका काला चिट्ठा अधिकारियों के सामने रख दिया। सुनीता को इस तरह बोलते देख बाकी छात्राओं में भी उत्साह जगा और उन्होंने भी सब कुछ साफ-साफ बता दिया। इसके कुछ दिनों बाद स्कूल की सभी छात्राओं को छात्रवृत्तियां वितरित कर दी गई।

अफरीदा ने पाया दाखिला
आजमगढ़ से पढ़ाई के सपने संजोकर दिल्ली आई अफरीदा बानो के सपने उस वक्त बिखरने लगे जब कोंडली के दो और दल्लूपुरा के एक स्कूल ने उसे दाखिला देने से मना कर दिया। नौंवी कक्षा में दाखिले के लिए उसने अपने पिता सनीफ अहमद के साथ अनेक चक्कर काटे लेकिन स्कूल ने जैसे दाखिला न देने की कसम खा ली थी। उप शिक्षा अधिकारी को दाखिले के लिए प्रार्थना पत्र भेजा और वहां से स्कूल को दाखिला करने के निर्देश मिले। लेकिन स्कूल ने इस बार भी यह कहकर दाखिला देने से मना कर दिया कि कोई सीट खाली नहीं है। तब जाकर सनीफ ने सूचना के अधिकार का सहारा लिया। उपशिक्षा निदेशक कार्यालय आवेदन दाखिल कर उन्होंने निम्न प्रश्न पूछे-
-मेरी शिकायत की डेली प्रोग्रेस रिपोर्ट बताएं और यह किस अधिकारी के पास है, उसका नाम पद और फोन नंबर बताएं
-मेरी बेटी का एडमिशन कब तक हो पाएगा, तारीख बताएं
-शिक्षा अधिकारी द्वारा निर्देश दिए जाने के बावजूद प्रधानाचार्य ने प्रवेश देने से इंकार कर
दिया। क्या यह शिक्षा सम्बन्धी कानून का खुला उल्लंघन नहीं है?
-कृपया यह बताएं कि शिकायत में उल्लखित तीनों सरकारी विद्यालयों में कक्षा नवीं के लिए कितने सेक्शन हैं तथा प्रति सेक्शन कितने बच्चों को प्रवेश दिया गया है, कृपया प्रवेश रजिस्टर की कॉपी दें।
आवेदन में पूछे गए सवालों का असर ये हुआ कि उपशिक्षा निदेशक कार्यालय हरकत में आया है और अफरीदा बानो का शीघ्र दाखिला हो गया। यह दाखिला आध सत्र बीत जाने के बाद यानि अक्टूबर माह में किया गया।

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