शुक्रवार, 17 अप्रैल 2009

अदालत, आयोग और उत्तरपुस्तिका

भागीरथ
देश के करोड़ों छात्रों का भविष्य परीक्षा में प्राप्त होने वाले अंकों पर निर्भर करता है। ऐसे में कई छात्रों की शिकायत होती है कि उन्हें उम्मीद से कम अंक मिले हैं। कई बार ये शिकायत वाजिब भी होती है। लेकिन परीक्षा लेने वाली संस्थाएं किसी भी कीमत पर उत्तरपुस्तिका को सार्वजनिक नहीं करना चाहती। लेकिन सूचना अधिकार कानून लागू होने के बाद परिस्थितियां कुछ-कुछ बदली हैं। केन्द्रीय सूचना आयोग, कई राज्य सूचना आयोग और उच्च न्यायालय ने इस ऐसे मामलों में छात्रहित में फैसला सुनाया है और परीक्षा लेने वाली संस्थाओं को उत्तरपुस्तिका छात्र को मुहैया कराने के आदेश दिए हैं। यहाँ छात्रहित से जुडे़ कुछ ऐसे ही मामलों का उल्लेख किया जा रहा है ताकि आम आदमी और खासकर छात्र वर्ग इससे लाभ उठा सके।

कलकत्ता उच्च न्यायालय:
कलकत्ता उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कलकत्ता विश्वविद्यालय को सूचना के अधिकार के जरिए आवेदक प्रीतम रूज को उत्तर पुस्तिका दिखाने का आदेश दिया है। विश्वविद्यालय के प्रेजीडेंसी कॉलेज मे पढ़ने वाले प्रीतम के एक पेपर में 28 अंक आए थे। कॉलेज द्वारा छात्र के कहने पर समीक्षा की गई तो 32 अंक हासिल हो गए। पेपर में क्या गड़बड़ी हुई, यही जानने के लिए छात्र ने आरटीआई के जरिए उत्तर पुस्तिका दिखाने की मांग की थी। उत्तर पुस्तिका दिखाना विश्वविद्यालय के नियमों में नहीं है इस आधार पर विश्वविद्यालय ने उत्तर पुस्तिका दिखाने की मांग खारिज कर दी। आवेदक ने सूचना आयोग में जाने के बजाय सीधे उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की, जहां जस्टिस संजीव बनर्जी की एकल बैंच ने आवेदक के पक्ष में फैसला सुनाया। विश्वविद्यालय को इससे तसल्ली नहीं हुई और उसने एकल बैंच के इस फैसले को चुनौती दी थी।
कलकत्ता उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एस एस निज्जर और दीपांकर दत्ता की खंडपीठ ने एकल बैंच के पूर्ववर्ती फैसले को बरकरार रखते हुए विश्वविद्यालय, सीबीएसई और अन्य परीक्षा आयोजित करने वाली एजेंसिओं को कानून के दायरे में बताया है। न्यायालय ने कहा कि भारतीय संविधान की धारा 19 के अनुसार अभ्यर्थियों को उत्तर पुस्तिका हासिल करने का अधिकार है। निरीक्षण न करने देने से अभिव्यक्ति और सूचना के सांवैधनिक अधिकार को कोई मतलब नहीं रह जाएगा।

केन्द्रीय सूचना आयोग:
केस संख्या 1- केन्द्रीय सूचना आयोग ने एक अपील की सुनवाई की बाद पोंडिचेरी विश्वविद्यालय को आवेदक अजय कुमार साहू को न केवल उत्तर पुस्तिका दिखाने बल्कि उनकी छायाप्रति उपलब्ध कराने के आदेश भी दिए। उत्तरपुस्तिका न दिखाने के लिए अपीलीय अधिकारी ने दलील दी थी कि विश्वविद्यालय में उत्तरपुस्तिका दिखाने का कोई नियम या प्रावधन नहीं है और इस तरह की सूचना कानून की धारा 8(१)(ई) और (जे) के तहत आच्छादित है। आयोग ने सुनवाई में इन दलीलों को निराधर पाया और लोक सूचना अधिकारी को चेतावनी दी कि वह इस धारा का गलत इस्तेमाल न करे।

केस 2- सीआईसी ने मुकेश कुमार के नरेश बनाम सीबीएसई के निर्णय में सीबीएसई को उत्तरपुस्तिका दिखाने के आदेश दिए। आवेदक मुकेश कुमार ने अपने पुत्र रवि नरेश की उत्तरपुस्तिका दिखाने की मांग की थी जिसे सीबीएसई ने कानून की धरा 8 (१)(ई) का सहारा लेकर ठुकरा दिया था। मुकेश कुमार ने दलील दी की उनका पुत्र एक मेधावी छात्र है और उसने अनेक प्रतियोगी परीक्षाएं पास की हैं। उन्होंने अपने पुत्र के 90 प्रतिशत अंक प्राप्त होने की उम्मीद जताई थी। परीक्षा में कम अंक प्राप्त होने की वजह वह उत्तरपुस्तिका देखकर जानना चाहते थे। आवेदक की दलीलों से सहमत होते और पारदर्शिता का ख्याल रखते हुए आयोग ने सीबीएसई को उत्तरपुस्तिका दिखाने का आदेश दिया।

केस 3- दिल्ली के प्रमोद सरीन ने दिल्ली इंजीनियरिंग कॉलेज से 27 मई 2007 को आयोजित किए गए संयुक्त प्रवेश परीक्षा की टेस्ट बुकलेट, उत्तर और ओएमआर की प्रतियां मांगी, जिसे विश्वविद्यालय की बौद्धिक संपदा मानते हुए देने से मना कर दिया गया। साथ ही दलील दी कि इससे अन्य प्रतियोगी छात्रों पर भी बुरा असर पडे़गा। आयोग ने इन दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि वस्तुनिष्ठ प्रश्न तैयार करना कोई ऐसी कला नहीं है जिसे बौद्धिक संपदा माना जाए। आयोग ने विश्वविद्यालय की इस दलील को भी खारिज कर दिया है कि ओएमआर प्रति सार्वजनिक करने से भविष्य में अन्य विवाद और अदालती मामलों की संख्या बढ़ सकती है। इस संबंध में आयोग का मानना था कि भविष्य में आने वाली समस्याओं को आधार मानकर अपना फैसला नहीं दे सकती।

बिहार सूचना आयोग:
एलएन मिथिला विश्वविद्यालय के बी. कॉम प्रथम वर्ष के छात्र मुरारी कुमार झा ने अपनी उत्तरपुस्तिका निरीक्षण की मांग की लेकिन विश्वविद्यालय ने कानून की धरा 8(१)(ई) यानि वैश्वासिक रिश्ते की आड़ लेकर इसकी इजाजत नहीं दी। विश्वविद्यालय ने दलील दी कि परीक्षक और परीक्षा आयोजित करने वाली संस्था के बीच एक वैश्वासिक रिश्ता होता है। उत्तरपुस्तिका निरीक्षण की अनुमति देने से यह इस रिश्ते पर विपरीत असर पडे़गा, इसलिए निरीक्षण की अनुमति नहीं दी जा सकती। आयोग को इन दलीलों में कोई दम नजर नहीं आया। आयोग का मानना था कि जो रिश्ता विश्वविद्यालय और छात्र के बीच होता है वह विश्वविद्यालय और परीक्षक के बीच रिश्ते से अधिक मजबूत और महत्व पूर्ण होता है, इसलिए इसकी आड़ में निरीक्षण या उत्तरपुस्तिका दिखाने से मना नहीं किया जा सकता।

त्रिपुरा सूचना आयोग:
अगरतला की सोमाश्री चौधरी बनाम त्रिपुरा माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के मामले में त्रिपुरा राज्य सूचना आयोग ने बोर्ड को उत्तरपुस्तिका दिखाने के आदेश दिए हैं। सोमाश्री चौधरी ने 2007 की परीक्षा में कम अंक आने पर बोर्ड से बंगाली, गणित और जीवविज्ञान की उत्तरपुस्तिका दिखाने की मांग की थी। उत्तरपुस्तिका न दिखाने के लिए बोर्ड ने दलील दी थी कि इससे परीक्षक की सुरक्षा को खतरा उत्पन्न हो सकता है। इसके अलावा बोर्ड ने उत्तरपुस्तिका न दिखाने के पक्ष में उच्चतम न्यायालय, कलकत्ता उच्च न्यायालय और केन्द्रीय सूचना आयोग का भी हवाला दिया था लेकिन राज्य सूचना आयोग ने इन दलीलों को खारिज कर दिया और साथ की बोर्ड के लोक सूचना अधिकारी पर जुर्माना भी लगाया।

पश्चिम बंगाल सूचना आयोग
पश्चिम बंगाल सूचना आयोग ने कलकत्ता के सुजोय दास गुप्ता बनाम बर्धवान विश्वविद्यालय के मामले में उत्तरपुस्तिका आवेदक को उपलब्ध कराने के आदेश दिए हैं। एम ए राजनीति विज्ञान के एक पेपर (इंटरनेशनल लॉ) में सुजोय के 56 अंक आए थे जो समीक्षा कराने पर 47 हो गए। सुजोय दास गुप्ता इसी पेपर का निरीक्षण करना चाहते थे। लेकिन विश्वविद्यालय ने इसे निजी सूचना और व्यापक जनहित से सम्बंधित न होने और नियमों में ऐसा न होने की दलील देकर आवेदक को निरीक्षण करने की अनुमति नहीं दी। आयोग ने इन दलीलों को नहीं माना और कहा कि विश्वविद्यालय प्राधिकरण को अधिक से अधिक सूचना प्रदान करने की मानसिकता विकसित करनी चाहिए। साथ ही कहा कि विश्वविद्यालय को उत्तरपुस्तिका दिखाने का पूर्ण तंत्र विकसित करना चाहिए। और सुजोय दास गुप्ता को उत्तरपुस्तिका उपलब्ध करानी चाहिए।

उपरोक्त राज्य सूचना आयोगों और कलकत्ता हाईकोर्ट के निर्णय के अलावा गुजरात और छत्तीसगढ़ सूचना आयोग ने भी ऐसे निर्णय दिए हैं। हालांकि कुछ फैसलों के खिलाफ उच्च न्यायालयों में अपील की गई है। प्रतियोगी परीक्षाओं में भी आयोगों और उच्च न्यायालयों का उत्तरपुस्तिका को सार्वजनिक करने को लेकर सकारात्मक रूख रहा है। पहले केन्द्रीय सूचना आयोग और फ़िर दिल्ली उच्च न्यायालय ने यूपीएससी का उत्तरपुस्तिका दिखाने का ऐसा ही आदेश दिया है। हालांकि यह मामला फिलहाल उच्चतम न्यायालय में लंबित है। इसी तरह पटना उच्च न्यायालय भी एक फैसले में बिहार लोक सेवा आयोग को अभ्यर्थियों के प्राप्तांकों को सार्वजनिक करने के आदेश दिए हैं।
उधर छत्तीसगढ़ में राज्य सिविल सेवा परीक्षा में जबरदस्त धांधली का खुलासा भी सूचना के अधिकार की बदौलत ही हुआ था। इस मामले में राज्य लोक सेवा आयोग तात्कालीन चेयरमैन के खिलाफ मामला भी चल रहा है।

सवाल ये है कि विश्वविद्यालय को उत्तर पुस्तिका दिखाने में ऐतराज क्यों है? दरअसल विश्वविद्यालय को लगता ही नहीं है कि परीक्षा जांच में उनसे कोई गड़बड़ी हो सकती है। यह अलग बात है कि अनेक बार विश्वविद्यालय इस मामले में पहले ही कठघरे में खडे़ हो चुके हैं। दूसरा, उन्हें लगता है, ऐसा होने पर उनके कामकाज पर अनावश्यक भार पड़ जाएगा और पूरा परीक्षा तंत्र ढह जाएगा क्योंकि अगर एक बार उत्तर पुस्तिका दिखा दी तो उत्तर पुस्तिका देखने वाले छात्रों की बाढ़ आ जाएगी। विश्वविद्यालय की इन दलीलों से शायद ही कोई जवाबदेही और पारदर्शिता की उम्मीदें करने वाला सहमत होगा।
सवाल ये भी है कि क्या विश्वविद्यालयों और परीक्षा बोर्डों को गोपनीयता के नाम पर छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ करने खुली छूट दी जा सकती है? क्या छात्र को यह जानने का अधिकार नहीं है कि उत्तर पुस्तिका देखकर वह अपनी कमियां दूर कर सके ताकि आगामी परीक्षाओं में उन्हें न दोहराया जाए?

1 टिप्पणी:

mrit ने कहा…

जय हिंद!जय भ्र्ष्टाचार!