शुक्रवार, 17 अप्रैल 2009

यूजीसी का आदेश: पर्यावरण शिक्षा अनिवार्य

गिरीश चन्द्र करगेती
पर्यावरण संरक्षण का कार्य विभिन्न व्यक्तियों और संस्थाओं द्वारा लंबे समय से किया जा रहा है लेकिन अब तक सफलता नहीं मिली है। इसी क्रम में वरिष्ठ अधिवक्ता एवं पर्यावरणविद एम सी मेहता ने भारत के समस्त विद्यालयों, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय एवं अन्य शिक्षण संस्थानों में पर्यावरण का अनिवार्य पाठ्यक्रम लागू करने के लिए एक याचिका (संख्या 860/१९९१) उच्चतम न्यायालय में दाखिल की ताकि बचपन से ही विद्यार्थियों के मन में पर्यावरण संरक्षण की सोच विकसित हो सके। उच्चतम न्यायालय ने 18 दिसंबर 2003 में इस याचिका पर ऐतिहासिक निर्णय सुनाया जिसके अन्तर्गत एआईसीटीई, एनसीईआरटी, यूजीसी को पर्यावरण का अनिवार्य पेपर 2004-05 सत्र से लागू करने का आदेश दिया और पालन न करने पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की बात कही। उच्चतम न्यायालय के पूर्ण आदेश मिलने से पहले ही विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने उच्चतम न्यायालय के अंतरिम आदेश का पालन करते हुए भारत के समस्त विश्वविद्यालयों और संस्थानों को सिक्स मंथ मोड्यूल सिलेबस पफॉर इनवायरमेंट स्टडीज इन अंडरग्रेजुएट्स कोर्सेस में लागू करने का आदेश अपने पत्र डी ओ संख्या एफ13-1/2000 (एफए /ईएनयू/सीओएस-एफ) 23 जुलाई 2003 को प्रेषित किया और पत्र में वर्तमान सत्र में पेपर लागू करने का आदेश भी दिया।
लेकिन सूचना के अधिकार का इस्तेमाल करने पर ये पता चला कि अब तक मात्र 94 विश्वविद्यालय और संस्थानों में ही यह पेपर लागू हुआ था। अप्रैल 2007 में जानकारी मांगी गई थी कि कितने विश्वविद्यालयों और संस्थानों ने छह माह का अनिवार्य पेपर लागू किया है। मई 2007 में यूजीसी ने उत्तर दिया कि भारत में 94 विश्वविद्यालयों और संस्थानों ने उच्चतम न्यायालय के आदेश का पालन करते हुए अनिवार्य पर्यावरण का पेपर लागू किया और 268 विश्वविद्यालयों एवं संस्थानों ने 2007 तक इसे लागू नहीं किया। पेपर लागू न करने पर कार्रवाई के बारे में पूछने पर यूजीसी ने समस्त संस्थानों को जुलाई 2003 का पत्र अनुस्मारक के रूप में प्रेषित किया ताकि तुरंत पेपर लागू किया जा सके।

इस क्रम को आगे बढ़ाते हुए जुलाई 2007 में पुन: आरटीआई आवेदन डालकर पेपर लागू न करने वाले संस्थानों के विरुद्ध की गई कार्रवाई की स्थिति जाननी चाही। यूजीसी ने जवाब दिया कि पुन: अनुस्मारक भेजा गया है और उच्चतम न्यायालय की अवमानना तथा सख्त कार्रवाई की स्थिति के संदर्भ में उन्होंने लिखा कि आयोग अपने वकील से संपर्क बना रहा है। कुछ समय बाद मई 2008 को यूजीसी के वकील के पत्र की प्रति और अप्रैल 2008 तक कितने संस्थानों ने पेपर लागू किया है, की सूचना मांगी गई। जवाब में यूजीसी के वकील अमितेश कुमार के पत्र की प्रति और कुछ विश्वविद्यालय और संस्थानों की सूची दी गई जिन्होंने पेपर लागू कर दिया था। वकील के पत्र में संयुक्त सचिव को सुझाव दिया गया था कि जो संस्थान आदेश नहीं मान रहे हैं उनका अनुदान रोक लिया जाए। और इस संदर्भ में मेमो भी जारी करे। इसके बाद यूजीसी ने भारत के समस्त संस्थानों को अंतिम मेमो भेजा और स्पष्ट किया कि पर्यावरण का पेपर लागू न करने की स्थिति में वार्षिक अनुदान रोक लिया जाएगा।
जाहिर है यह आरटीआई का ही कमाल था कि यूजीसी को इस मामले पर रूख अपनाना पड़ा। और इसका नतीजा ये निकला कि अब देश के सभी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में छात्रों को पर्यावरण का पाठ पढ़ाया जाएगा।

(अपना पन्ना के अप्रैल अंक में प्रकाशित)

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

लेकिन पर्यावरण शिक्षकों की भर्ती मध्यप्रदेश में आजतक नहीं हुई इच्छानुसार किसी भी शिक्षक से पढवाया जा रहा जबकि पर्यावरण में उच्च शिक्षित, पीएचडी संपन्न विद्वान भटक रहें हैं। उमेश मिश्र पर्यावरणविद् रीवा (म.प्र.)