मंगलवार, 3 मार्च 2009

जम्मू-कश्मीर में ताकतवर होगा आरटीआई

जम्मू और कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने अपने कहे अनुसार राज्य को केन्द्र के समकक्ष सूचना के अधिकार देने की पूरी तैयारी कर ली है। इसके लिए जम्मू-कश्मीर सूचना के अधिकार कानून का मसौदा तैयार कर लिया गया है। इससे पहले राज्य में जो सूचना का अधिकार कानून लागू था, उसमें कई खामियां थीं और नागरिकों को सूचना मिलने की पर्याप्त व्यवस्था नहीं थी। नए कानून में केन्द्रीय कानून के तमाम अच्छे बिन्दुओं के साथ कुछ ऐसे प्रावधन भी किए गए हैं जो इस कानून को केन्द्रीय कानून से बेहतर बनाते हैं। इस कानून में सबसे मजबूत पहलू सूचना आयोग द्वारा मामले को निपटाने की तय समय सीमा है। इसमें बताया गया है कि सामान्य परिस्थितियों में दूसरी अपील 60 दिन में निस्तारित हो जानी चाहिए। कुछ परिस्थितियों में 120 दिन की समय सीमा तय की जा सकती है लेकिन इसके पीछे ठोस आधार होना चाहिए और सूचना आयुक्त को इनका रिकॉर्ड लिखित रखना होगा। इस तरह की समय सीमा अब तक न तो केन्द्रीय सूचना आयोग में है और न ही किसी राज्य सूचना आयोग में।
पूर्ववर्ती कानून में जुर्माने का प्रावधान भी काफी कमजोर था। सूचना देने में देरी करने पर 50 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से अधिकतम 5 हजार तक के जुर्माने का प्रावधान था। लेकिन अब नए कानून में 250 रुपये प्रतिदिन और अधिकतम 25 हजार तक का जुर्माना लगाया जा सकेगा। कानून के नए मसौदे में सूचना आयुक्तों की नियुक्ति विवादास्पद है। इसमें बताया गया है कि सूचना आयुक्त के लिए वही व्यक्ति योग्य होगा जिसने जम्मू कश्मीर सरकार की मुख्य सचिव, सचिव या आयुक्त के रूप में सेवा की हो। केन्द्र और राज्य सूचना आयोगों में अब तक का अनुभव रहा है कि नौकरशाह इस पद के लिए उपयुक्त साबित नहीं हो रहे हैं। उनसे कहीं बेहतर पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता, प्रबंधन, कानून क्षेत्र से आए व्यक्ति साबित हो रहे हैं।

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